मंगलवार, 3 सितंबर 2013

रसखान स्मृति समारोह - ‘वा छवि को रसखान विलोकत’

                                                                              
दिलों के बीच बढ़ती जा रही दूरियों को कम करने में रसखान सरीखा कृष्णक्ति का उदाहरण बेजोड़ है -         किरण बजाज                                            

 ‘वा छवि को रसखान विलोकत’ समारोह में मंचासीन अतिथि एवं विद्वतजन

      ‘शब्दम्’ ने महान कृष्णभक्त कवि रसखान की स्मृति में  ‘वा छवि को रसखान विलोकत’ शीर्षक से मथुरा के होटल ’ब्रजवासी लैंड्स इन’ में 17 अगस्त को परिचर्चा एवं गायन का भव्य आयोजन किया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सहयोग से हुए इस आयोजन में ’द ब्रज फाउंडेश’ ने सहप्रायोजक के रूप में सहभागिता की।
 रसखान की समाधि पर पुष्पार्चन करते हुए आयोजक
 संस्थाओं के मुख्य पदाधिकारी

   आयोजन के आरंभ से पूर्व सुबह उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह, शब्दम् के वरिष्ठ सदस्य श्री शेखर बजाज एवं अन्य प्रमुख लोगों ने महावन स्थित रसखान  की समाधि पर पुष्पार्चन किया।

स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए श्रीमती किरण बजाज
    होटल के सभागार में श्री उदयप्रताप सिंह की अध्यक्षता में कार्यक्रम शुरू हुआ। श्रीमती किरण बजाज ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए तीन संगठनों के संयुक्त तत्वावधान को सुंदर संयोग बताया। उन्होंने कहा कि दिलों के बीच बढ़ती जा रही दूरियों को कम करने के लिए ऐसे आयोजन उपयोगी हैं। रसखान सरीखा कृष्णक्ति का उदाहरण बेजोड़ है। ऐसे ही लोग दिलों में प्रेम की गंगा-जमुना बहाने का चमत्कार कर सकते हैं।

   शब्दम् का परिचय देते हुए साहित्यकार और शब्दम् सलाहकार डा०महेश आलोक ने कहा कि शब्दम् द्वारा किए जा रहे कार्य, किसी समुद्र में एक बूंद का सहयोग देने के समान हैं, लेकिन हिन्दी और संस्कृति के उन्नयन के लिए हम सब मिल कर एक बड़ी धारा बनने की दिशा में काम कर सकते हैं। ’द ब्रज फाउंडेश’ के अध्यक्ष विनीत नारायण ने अपने संगठन का परिचय देते हुए रसखान के आयोजन में शामिल होना, सौभाग्य बताया।उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के श्री अनिल मिश्र ने संस्थान की  गतिविधियों का विस्तार से परिचय दिया।

 स्मारिका का विमोचन करते हुए श्री शेखर बजाज,
श्रीमती किरण बजाज, श्री उदय प्रताप सिंह
 डा0 सुधाकर अदीब एवं श्री विनीत नारायण।
   प्रथम सत्र में परिचर्चा आरंभ करते हुए सेंट जांस कालेज आगरा के पूर्व विभागाध्यक्ष, साहित्यकार डा० श्रीभगवान शर्मा ने विषय का प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि रसखान ने विधर्मी होते हुए भी हिन्दी वाङमय और भक्ति साहित्य में जो अप्रतिम योगदान दिया है, उसकी तुलना करोड़ों हिन्दू से भी नहीं की जा सकती है। मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि रसखान के काव्य ने हिन्दी साहित्य को निश्चित ही एक नई दिशा प्रदान की।

  डा० सईद अहमद सईद ने अपने विचार रखते हुए कृष्णभक्ति साहित्य में रसखान के स्थान को श्रेष्ठ बताया। उन्होंने कहा कि वैष्णव भक्ति में नवधा भक्ति को पूर्ण महत्व दिया जाता है। इस भक्ति में मधुरभाव को जोड़कर इसके दस सोपान बना दिए हैं। लेकिन रसखान के काव्य में भक्ति के दस सोपान पूर्ण रूप में नहीं मिलते क्योंकि रसखान किसी बंधी हुई पद्धति पर चलने वाले कवि नहीं हैं। ये प्रेमोन्मत्त भक्त कवि के रूप में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। रसखान के कृष्णभक्त काव्य में माधुर्य भक्ति ने ही उत्कृष्ट स्थान पाया है। 

   परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुष्टिमार्ग में रसखान के स्थान को रेखांकित किया डा० नटवर नागर ने। उन्होंने कहा कि वल्लभाचार्य के पश्चात उनके द्वितीय पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने अपने पिता द्वारा प्रवर्तित दलितोद्धार की परम्परा को और भी अधिक वेग प्रदान किया। उन्होंने कहा कि पुष्टिमार्गीय दीक्षा की यह विशेषता है कि यदि कोई विधर्मी पुष्टिमार्ग में दीक्षित होता है, तो आचार्य उसे धर्म छोड़ने के लिये नहीं कहते, वह अपने धर्म में रहकर भी वैष्णवत्व का पालन करते हुए, श्रीकृष्ण की भक्ति कर सकता है। रसखान भी मुसलमान रहते हुए श्रीकृष्ण के परम भक्त हुए।
अध्यक्षीय संबोधन प्रस्तुत करते हुए श्री उदय प्रताप सिंह साथ में  श्रीमती किरण बजाज एवं  डा0 सुधाकर अदीब 
                                                                                          

    डा० केशवदेव ने कहा कि रसखान के काव्य में  लोक मानस के सहज विश्वास, जीवन-चिंतन, धर्म-ज्ञान शिक्षा एवं व्रत-अनुष्ठानों से परिपूर्ण जीवन-शैली तथा ईश्वरीय विश्वास के दिग्दर्शन सर्वत्र झलकते रहते हैं। ....रसखान के कवित्त और सवैयों में ब्रज के लोक-जीवन का जीवंत रूप चित्रित है।
सभागार में श्रोता के रूप में उपस्थित  कवि
 साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी

    डा० उमेश चंद्र शर्मा ने रसखान के काव्य में अमृतत्व के रस को रेखांकित करते हुए कहा, रसखान के अनुसार इन्द्रियों की सार्थकता कृष्णमयता में ही सन्निहित है। अर्थात् वाणी, कर्ण कुहर, हस्तपाद आदि सभी कृष्ण भक्ति में सरावोर रहें। रसखान कहते हैं कि इन्द्रियों की सार्थकता कृष्णमयता में ही सन्निहित है। उस त्रिभंगललित की रूप माधुरी को जो एक बार देख लेगा फिर उसका मन उससे जुड़ता ही चला जाता है, लोक-लाज, भय-चिंता आदि से अति दूर हो जाता है। 
कवित्त-सवैयों के गायन से कलाकारों ने समां बांधा
   रसखान काव्य के भाग गांभीर्य की चर्चा की करते हुए डा० नीतू गोस्वामी ने कहा कि  जो काव्य रचना मनुष्य के ह्रदय पर प्रभाव छोड़ने में सक्षम होती है वास्तव में वही रचना श्रेष्ठ होती है। भक्त कवि रसखान ने श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त करने की जो तीव्र इच्छा प्रकट करते हुए अपनी रचनाओं में जो भाव प्रदर्शित किया है, वह देखते ही बनता है।

    इस परिचर्चा को चरम पर पहुंचाया, मुख्य अतिथि डा०सुधाकर अदीब के वक्तव्य ने। उन्होंने कहा कि ब्रज के माधुर्य के साथ श्रीकृष्ण की भक्ति को जिस प्रकार डूब कर रसखान ने निमज्जित किया है, वह अनुपम है। डा० अदीब ने मधुरकंठ में कवित्त और सवैयों का गायन भी किया।
   प्रथम सत्र के उपसंहारस्वरूप समारोह अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने रसखान के चरित्र और व्यक्तित्व की सारगर्भित मीमांसा की। उन्होंने आयोजन की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्रीमती किरण बजाज को बधाई दी। श्री सिंह ने श्रोताओं की मांग पर अपनी कुछ कविताओं के अंश भी प्रस्तुत किए।

नाट्य कलाकारों ने कुछ इस तरह से
 रसखान के चरित्र को जीवंत किया
    दूसरे सत्र में भक्तरंजित रससिक्त रसखान के कवित्त और सवैयों का गायन किया गया। शब्दम् सलाहकार मंडल के श्री उमाशंकर शर्मा, डा०ए.के. आहूजा, डा०महेश आलोक,डा०रजनी यादव, डा०धु्रवेंद्र भदौरिया, श्री मंजर उल वासै, श्री अरविंद तिवारी ने कलाकारों का स्वागत किया। सवैयों के गायन ने साज और आवाज की जुगलबंदी से सभागार में उपस्थित रसज्ञ श्रोताओं को विभोर किया। 

    भगवान श्रीनाथ के दर्शन के बाद एक मुसलमान युवक के दायरे से बाहर निकल कर रसखान को भक्त-कवि के जीवन में ले जाने वाले क्षणों को सांगीत नाटिका के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। प्रभु का दर्शन पाकर धन्य और विभोर हुए रसखान के दृश्य ने भावुकता का चरम उपस्थित कर आयोजन के शीर्षक ‘वा छवि को रसखान विलोकत’ को बखूबी रूपायित किया।

    आगरा और ब्रजमंडल के अनेक साहित्यानुरागी, कवि, साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने अपनी गौरवमयी उपस्थिति देकर आयोजन को सार्थक किया।

प्रस्तुति के समापन पर आयोजकजन और वक्तागण साथ-साथ


                                          

                     रसखान का संक्षिप्त परिचय

     कृष्णभक्त कवियों में रसखान का नाम बहुत प्रसिद्ध है। इनके जन्म, मृत्यु और निवास का कोई स्पष्ट विवरण नहीं है। मात्र उनकी रचनाओं में आए प्रसंगों को आधार बना कर उनका जन्म 1533 से 1548 ईस्वी के मध्य और मृत्यु 1618 ईस्वी के आसपास मानी जाती है। दिल्ली के निकट उनका मूल निवास माना जाता है। 
दिल्ली में तत्कालीन सत्ता के लिए मचे द्वन्द्व और मारकाट से व्यथित कोमल युवा मन रसखान, प्रेमानंद की खोज में वृंदावन आ गए। ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक युवती से उनकी प्रीति थी, लेकिन उनके सांसारिक प्रेम के मार्ग पर जल्द ही ऐसा मोड़ आ गया जिसने उन्हें अलौकिक प्रेम के पथ का पथिक बना दिया। वे श्रीनाथ जी के दर्शन कर कृष्णभक्त हो गए। गोस्वामी बिट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली। ‘दौ सौ वैष्णवन की वार्ता’ में इनके विषय में बहुत कुछ आया है।
    बादशाह वंश के जन्मजात मुसलमान रसखान ने स्वयं को राज्यलिप्साजन्य द्वन्द्व से मुक्त कर जिस श्रद्धा, प्रेम और भक्तिमय रस-सागर में निमज्जित किया, उसी में उनके वास्तविक काव्य व्यक्तित्व का मधुर रूप ढला। प्रेम तत्व के निरूपण में उन्हें अद्भुत सफलता मिली है। उनका प्रेम वर्णन बड़ा सूक्ष्म, व्यापक एवं विशद है। उनके काव्य का प्रमुख रस श्रंगार है, जिसके आलम्बन हैं - श्रीकृष्ण। दूसरा प्रमुख रस वत्सल है। श्रीकृष्ण के बाल रूप की माधुरी का वर्णन उन्होंने यद्यपि गिने-चुने छन्दों में ही किया है, पर उनकी काव्यात्मक गरिमा सूर और तुलसी के बाल-वर्णन की समता करने में भली भांति सक्षम है।

   रसखान की ‘प्रेमवाटिका’ और ‘दानलीला’ कृतियों के अतिरिक्त उनकी संपूर्ण वाणी मुक्तक सवैयों में आबद्ध है। वर्तमान में ‘सुजान रसखान’ सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसमें 181 सवैये, 17 कवित्त, 12 दोहे और 4 सोरठे हैं। ‘प्रेम वाटिका’ में राधाकृष्ण को प्रेमोद्यान का मालिन-माली मान कर प्रेम के गूढ़ तत्व का सूक्ष्म निरूपण किया गया है। ‘दानलीला’ केवल 11 छंदों का छोटा सा पद्य प्रबंध है। जिसमें राधाकृष्ण का संवाद वर्णित है। एक अन्य कृति ‘अष्टयाम’ भी प्रकाश में आई है। इसमें दोहा के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयनपर्यंत तक की दिनचर्या एवं क्रीड़ाओं का वर्णन है।

     वास्तव में काव्य रचना रसखान का साध्य नहीं था और न ही उनकी वाणी का विलास धन-वैभव की प्राप्ति के निमित्त था। उन्होंने तो अनन्त-अलौकिक रस के आगार श्रीकृष्ण के लीलागान के रसास्वादन में ही स्वयं को कृतकृत्य समझा।


रसखान की रचनाओं की बानगी-


सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं,
जाहि अनादि अनंत अखंड, अछेद अभेद सुवेद बतावैं।
नारद से सुक व्यास रटैं, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं,
ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया  भरि छाछ पै नाच नचावैं।
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धूर भरंै अति सोभित स्याम जु तैसी बनी सिर सुंदर चोटी,
खेलत खात फिरै अंगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछौटी।
वा छवि को रसखान विलोकत बारत काम कला निज कोठी,
काग के भाग बडे सजनी हरि हाथ सौं लै गयौ रोटी।
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मानुष हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन,
जो पशु हौं तो कहा बस मेरौ चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो लियो कर छत्र पुरंदर कारन,
जो खग हौं तो बसेरौ मिलै कालिंदिकूल कदम्ब की डारन।
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मोतिन माल बनी नट के, लटकी लटवा लट घूँघर वारी,
अंग ही अंग जराव लसै अरू सीस लसै पगिया जर तारी।
पूरब पुन्यनि ते रसखानि सु मोहिनी मूरति आनि निहारी,
चार्यौ दिसान की लै छबि आनि कै झाँकें झरोखे में बाँके बिहारी।
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सुनियै सबकी कहियै न कछू रहियै या मन-बागर में,
करियै ब्रत नैम सचाई लिये जिनतैं तरिये मन सागर में।
मिलियै सबसौं दुरभाव बिना रहियै सतसंग उजागर में,
रसखान गुबिन्दहिं यौं भजिये जिमि नागरि को मन गागर में।
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मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माल गरे पहिरौंगी,
ओढ़ पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी।
भावतो वाहि मेरौ रसखान सो तेरे कहे सब स्वांग करौंगी,
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।


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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

हिन्दी सेवी सम्मान- 2013

                                       
 वर्ष 2013 का ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ विख्यात भागवत् वक्ता एवं हिन्दी सेवी पंडित श्रीकृष्णचंद्र शास्त्री ‘ठाकुरजी’ को प्रदान किया गया

 
श्रीकृष्णचंद ‘ठाकुरजी’ को सम्मान भेंट करते हुए श्री शेखर बजाज
   ‘शब्दम्’ द्वारा हिन्दी और उसकी संस्कृति के लिए विशिष्ट एवं मूल्यवान कार्य करने वाले एक व्यक्ति को हर वर्ष ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ प्रदान किया जाता है। देश के विशिष्ट नागरिक अपने मूल कार्य के साथ हिन्दी को बढ़ाने में रुचि और समर्पण दिखाएं, इस सम्मान के पीछे शब्दम् का यही उद्देश्य है।
शब्दम् हिन्दी सेवी सम्मान का प्रमाणपत्र
   21 जुलाई को गुरूपूर्णिमा के अवसर पर इस वर्ष का ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ विख्यात भागवत् वक्ता एवं हिन्दी सेवी पंडित श्रीकृष्णचंद्र शास्त्री ‘ठाकुरजी’ को प्रदान किया गया। वृन्दावन में भागवत् कथा के आयोजन में बजाज इलैक्ट्रीकल्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एवं शब्दम् के वरिष्ठ सदस्य श्री शेखर बजाज ने सम्मान पत्र के साथ अभिनंदन पत्र, अंगवस्त्र, श्रीफल एवं गुप्त सम्मान राशिश्री ठाकुरजी महाराज को भेंट की।
  पंडित श्रीकृष्णचंद्र शास्त्री ‘ठाकुर जी’ के बारे में भागवत मर्मज्ञ सरस्वती के वरदपुत्र श्रीकृष्णचंद्र शास्त्री ‘ठाकुरजी’ रामचरित मानस की कथा भी सुनाते हैं। ऐसे में आपके हृदय में रामायणी गंगा और भागवती यमुना का संगम कहा जा सकता है। आपकी ज्ञानमयी वाणी को सुनने के लिए अहिन्दी क्षेत्रों के लोग भी हिन्दी को समझने के लिए लालायित हो उठते हैं।
   पिछले 38 वर्षों के दौरान आपने पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही निरंतर विभिन्न प्रांतों एवं देश-विदेश में भागवत कथा, रामचरित मानस कथा एवं गीता प्रवचन के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रसार किया है। आपकी लोकप्रियता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच कर हिन्दी भाषा को गौरव प्रदान कर रही है।
   श्रीमती किरण बजाज द्वारा भेजे गए संदेश में श्रीमती बजाज ने ठाकुरजी की हिन्दी सेवा पर प्रकाश डालते हुए ‘शब्दम्’ का परिचय प्रस्तुत किया और लोगों से हिन्दी को अपनाने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने का निवेदन किया।

सम्मान समारोह में उपस्थित श्रोतागण
                                           


                                                                     पूर्व में दिए गए सम्मान

  ‘शब्दम्’ द्वारा पिछले कुछ वर्षों में जो लोग सम्मानित किए गए उनमें मुख्य हैं- मुक्तक रचयिता श्री लाखन सिंह भदौरिया,भूतपूर्व सांसद एवं कवि श्री उदयप्रताप सिंह,  साहित्यकार एवं गजलकार श्री नंदलाल पाठक, हिन्दी सेवी पद्मभूषण न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी, मराठी भाषी हिन्दी साहित्यकार डा० चंद्रकांत वांदिवडेकर,हिन्दी आलोचना के शिखर पुरूष प्रो. नामवर सिंह एवं श्री वेदप्रताप वैदिक।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

स्थाई कार्यक्रम : सिलाई केंद्र

                                                                                                 सिलाई केंद्र


 हिन्द परिसर स्थित सिलाई केंद्र में प्रशिक्षण प्राप्त करती बालिकाएं

        बालिकाओं में रोजगारपरक कौशल को विकसित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर शब्दम् सिलाई केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। एक केंद्र हिन्द परिसर में स्थाई रूप से संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा निश्चित समयावधि के लिए गांवों में संचालित किया जाता है। केंद्र में निपुण प्रशिक्षिकाओं की व्यवस्था के द्वारा बालिकाओं को घरेलू आवश्यकता के अनुरूप कुशल बनाने और रोजगारपरक ढंग से सुशिक्षित बनाने का उद््देश्य समाहित है।
     इस सत्र में हिन्द परिसर में स्थित केंद्र में दो दर्जन बालिकाओं ने सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। जबकि गांव गैलरई में संचालित केंद्र में करीब डेढ़ दर्जन बालिकाओं को प्रशिक्षण दिया गया। बालिकाओं से न्यूनतम शुल्क भी लिया जाता है। पिछले करीब आठ वर्ष में इन सिलाई केंद्रों के माध्यम से आठ सौ बालिकाओं को रोजगारपरक ढंग से निपुण बनाया जा चुका है। वर्तमान सत्र में दोनों केंद्रों में कुल करीब 40 बालिकाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं।


गतिविधियां : बुद्ध जयंती

                                                                                                      बुद्ध जयंती

        भगवान बुद्ध की जयंती 25 मई, 2013 को शिकोहाबाद में बच्चों के साथ एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। आयोजन में वक्ताओं ने बताया कि महात्मा बुद्ध ने प्रार्थना, ध्यान और करुणा जैसे मूल्यों को जीवन में विशेष महत्व देने का संदेश दिया और लोगों को व्यवहारिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जीवन के कल्याण के लिए आष्टांग मार्ग खोजा। व्यवहारिक जीवन में उनके बताए मध्यमार्ग का अनुकरण विश्व के अनेक देश कर रहे हैं। संगोष्ठी में बच्चों ने उनके जीवन से प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किए। श्रीमती रेखा शर्मा ने भगवान बुद्ध के चित्र पर दीप प्रज्जवलित कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया। बच्चों ने पुष्प अर्पित कर भगवान को नमन किया।

बुद्ध जयंती पर बच्चों एवं युवाओं के मध्य परिचर्चा करते ‘शब्दम्’ पदाधिकारी
      प्रेरक प्रसंगः एक बार पुत्र शोक से पीडित महिला अत्यंत व्यथित दशा में महात्मा बुद्ध के पास पहुंची। उसने अपनी पीडा के निवारण के लिए प्रार्थना की। महात्मा ने महिला से कहा कि एक ऐसे घर से कुछ भिक्षा लेकर आओ जिसमंे कभी किसी की मृत्यु न हुई हो। तभी मैं तुम्हारी पीडा का शमन करूंगा। महिला यह बात मान कर भिक्षा मांगने चली गई और पूरे दिन दर-दर घूमी। लेकिन उसे एक भी ऐसा घर नहीं मिला, जिसमें कभी किसी की मृत्यु न हुई हो। शाम को वह रीता वर्तन लेकर वापस पहुंची तो बुद्ध ने उसे समझाया कि मृत्यु तो शाश्वत है। हर किसी को एक न एक दिन अपने प्रियजन को खोना पडता है। महिला उनके उपदेश का अनुभव कर चुकी थी। अतः उनकी बात सुन कर उसका पुत्र मोह का सारा दुख जाता रहा।




स्थाई कार्यक्रम : शब्दम् बालिका पाठशाला

                                                                      शब्दम् बालिका पाठशाला


पाठशाला में बालिकाओं एवं महिलाओं को शिक्षण प्रदान करते हुए शिक्षिका


       शब्दम् की ‘बालिका पाठशाला’ योजना गत वर्ष से संचालित की जा रही है। इसका उद्देश्य स्कूल नहीं जा सकी अथवा स्कूल छोड़ कर घर बैठ गई बालिकाओं एवं महिलाओं को सामान्य हिंदी पढ़ना व लिखना सिखाना और घरेलू या अपने कामकाज का हिसाब लगाने के लिए जरूरी गणित सिखाना है।  पाठशाला में छह माह की अवधि का एक सत्र होता है। जिसे आवश्यकता के अनुरूप किसी उपयुक्त स्थान शुरू किया जा सकता है।
इस बार का सत्र शिकोहाबाद के एक नितांत दलित आबादी वाले गांव नगला भीमसेन मंे प्रारंभ किया गया है। आरंभ होने से पहले गांव का सर्वे कर आवेदन मांगे गए। गांव की 14 बालिकाओं और महिलाओं ने पाठशाला में प्रवेश पाने के लिए आवेदन किया। ये वे महिलाएं या बालिकाएं थीं जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था या कुछ समय स्कूल जाने के बाद वे निरंतर नहीं हो सकी थीं। यह गांव लगभग दो शताब्दी पुराना बताया जाता है लेकिन इसके विकास की आज तक किसी ने सुधि नहीं ली है। ऐसे में शब्दम् पाठशाला के प्रयास का गांव वालों ने उत्साह से स्वागत किया। कुछ ही दिन में यहां विद्यार्थिनों की संख्या 21 हो गई।
    इस पाठशाला का आरंभ सुबह की प्रार्थना के साथ होता है और इसके लिए 6 माह का विशेष पाठ्यक्रम शब्दम् के लोगों द्वारा ही बनाया गया है। जिसमें हिन्दी का अक्षर, शब्द और स्वर-व्यंजन का ज्ञान, लिखने-पढ़ने का अभ्यास आदि शामिल हैं। गणित में अंक ज्ञान, उनकी पहचान, लिखने और पढ़ने का अभ्यास, सौ तक गिनती, दस तक पहाड़े। जोड़, गुणा, घटना और भाग सिखाया जाता है।
     इसके अलावा ज्ञानवर्द्धक, नैतिक एवं रुचिकर कहानियों के माध्यम से नैतिक ज्ञान, स्वास्थ्य और स्वच्छता की शिक्षा भी दी है।
     शिक्षण के लिए एक स्नातक महिला को नियुक्त किया गया है। शब्दम् के पदाधिकारी समय-समय पर अवलोकन और दिशा निर्देशन देते हैं। कमजोर बालिकाओं के लिए अतिरिक्त कक्षा भी ग्रामवासियों ने इसके लिए एक निशुल्क भवन प्रदान किया है। सफाई और भवन के रखाव आदि व्यवस्थाओं मंे ग्रामवासी पूरे उत्साह से सहयोग करते हैं।
    शब्दम् पाठशाला का यह छोटा सा प्रयास, घोर तिमिर में एक दीप जलाने जैसा है। हमारे गांवों से अशिक्षा के अंधकार को हटाने के लिए सरकारी और गैरसरकारी निगमों और संगठनों को आगे आना चाहिए। सभी को मिल कर इस स्थिति के विरूद्ध कमर कस कर कार्य करना होगा, तभी सच्चे मायने में समाज और देश की सेवा को चरितार्थ किया जा सकेगा।


                                                                 छठवां ग्रामीण कवि सम्मेलन


कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करते हुए कवयित्री श्रीमती नीलम

     हमेशा की तरह गांव मंे होने वाला ‘शब्दम’ ग्रामीण कवि सम्मेलन जसराना तहसील के बनवारा गांव में 22 जून 2013 को संपन्न हुआ। इसके माध्यम से बड़ी संख्या में दूरदेहात के लोगों ने साहित्य और काव्य के संस्कार को नजदीक से जाना और विभिन्न रस की कविताओं का सुबह से शाम तक आनंद लिया।

     आयोजन की गहमागहमी सुबह से ही रही। उम्मीद के विपरीत मौसम ने साथ दिया। गांव वालों ने जोश के साथ सहभागिता की। वे हिन्दी की कविता को सुनने एवं उनको रचने वालों का दर्शन करने को आतुर दिखाई दिए।
 काव्यपाठ करते हुए कवि श्री शिवसागर शर्मा
   इस आयोजन हेतु ‘शब्दम्’ ने ग्रामीण परिवेश की रचनाओं के लिए उपयुक्त कवियों को आमंत्रित किया। ओज कवि श्री रामनरेश रमन (झांसी), गीतकार श्री शिवसागर शर्मा (आगरा), श्री बलराम श्रीवास्तव (किशनी) एवं श्रीमती नीलम नीरजा (ग्वालियर) के अलावा हास्य-व्यंग्य के कवि श्री गोविंद पटवारी (धौलपुर) को आमंत्रित किया था। कवियों ने अपने-अपने रस और विधा की रचनाएं प्रस्तुत कर ग्रामीण श्रोताओं का मन मोहित किया। युवाओं के मन में ओजस्वी कविताओं ने देश प्रेम की ज्वाला फूंकी। गीतों ने संस्कृति, प्रकृति और श्रंगार आदि विषयों पर श्रोताओं को सिक्त किया। वहीं हास्य की रचनाओं ने भी लोगों को खूब गुदगुदाया। 

 कवि सम्मेलन में कविताओं का रसास्वादन करते हुए महिलाएं एवं पुरुष श्रोता
शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती किरण बजाज ने मुंबई से फोन के द्वारा ग्रामीणों को संबोधित किया। उन्होंने ग्रामवासियों का आह्वान किया कि अब देश की किस्मत गांव के हाथ में है। संस्कृति और प्रकृति की सभ्यता गांव से ही शुरू हुई है इसलिए गांव को जागरूक होकर हिन्दी भाषा और संस्कृति को बचाना होगा। शब्दम उपाध्यक्ष श्री नंदलाल पाठक द्वारा भेजी गई काव्य पंक्तियों का वाचन किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने भी श्रोताओं को फोन से संबोधित किया। उन्होंने गांव वालों के उत्साह की प्रशंसा की और अपनी कुछ रचनाएं भी सुनाईं।

 मुख्य अतिथि के रूप में डा० ओ.पी. सिंह ने आभार प्रकट करते हुए आयोजन को सफलतम बताया।




शनिवार, 4 मई 2013

कला को मा़त्र मनोरंजन का साधन बनाना घातक: डा० आनंदा शंकर जयंत


                                          कला के माध्यम से ईश्वर को भी पा सकते हैं
                             फिल्मों ने कला के स्तर को क्षति पहुंचाई
                                                                       
                                                                           -  डा० आनंदा शंकर जयंत

 डा० आनंदा शंकर जयंत
    शिकोहाबाद।भरतनाट्यम्‌ और कुचिपुडि नृत्य की विश्वविख्यात नृत्यांगना पदमश्री आनंदा शंकर जयंत का मानना है कि कला को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम मान लेना बडी भूल है। कला के माध्यम से पूरे जीवन और समाज का कल्याण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि व्यवसायिकता की अंधी दौड में फिल्मों ने कला को ग्लैमर में बदल दिया है।
आनंदा शंकर ने कहा कि नृत्यकला मात्र शरीर को कुछ आकृतियों और लयताल के साथ मंच पर प्रस्तुत कर देना नहीं है। कोई भी संस्कृति या कला, व्यक्ति या उसके समाज की पारिभाषा होती है। संस्कृति से पूरे समाज की पहचान बनती है। उन्होने कहा कि नृत्य उनके लिए परमेश्वर के समीप जाने का माध्यम है।

शिकोहाबाद के हिन्दलैंप्स में शब्दम्‌ और स्पिक मैके के सहयोग से शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति के लिए आईं आनंदा शंकर ने मीडिया से बातचीत में अपने मन की बातें रखीं। उन्होंने आज के नृत्य को भौंडा प्रदर्शन बताया और कहा कि इसका उददेश्य मात्र मनोरंजन है। हालांकि अब तो स्वस्थ्य मनोरंजन मिलना भी कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि कला की अमूल्य धरोहर को सिर्फ मनोरंजन का साधन बना देना सही नहीं है।
देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम देकर भारत की संस्कृति को सम्मान दिलाने वाली आनंदा ने कहा कि नृत्य न तो उनकी अभिरूचि है और न ही करियर। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए समय पास करने का माध्यम भी नहीं है। डांस मेरे लिए मेरा ईश्वर को पाने का साधन है। उन्होने कहा कि अगर कोई भी कलाकार अपनी प्रतिभा के साथ साधना का भाव जोड लेता है और उसे सच्चे अर्थ में साकार करने कोशिश करता है तो कला अलौकिक उददेश्यों की पूर्ति भी करती है। उन्होंने कहा कि नृत्य वह है जो करने वाले और देखने वाले, दोनों ही लोगों को आत्मा तक आनंद की यात्रा को ले जाए।


शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत करतीं आनंदा शंकर जयंत





                                                          नृत्य के साथ अभिनय का बेजोड संगम  
                                                           हिन्दलैंप्स, शिकोहाबाद के संस्कृति भवन में आयोजन 

नृत्य की भावपूर्ण मुद्रा में  आनंदा शंकर जयंत



आनंदा शंकर जयंत की कला के जादू ने हिंदलैंप्स परिसर में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।  पद्मश्री अलंकरण से अलंकृत आनन्दा शंकर की  प्रस्तुति केवल शास्त्रीय नृत्य तक ही सीमित नहीं थी, उसमें नाटकीय अभिनय का भी व्यापक समावेश था। उन्होंने आधादर्जन प्रस्तुतियों से मंत्रमुग्ध कर दिया।

हिंदलैंप्स के संस्कृति भवन में डीएम संध्या तिवारी ने समारोह का शुभारंभ किया। बजाज इलैक्टीकल्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शेखर बजाज और शब्दम्‌ की अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज ने डाॅ आनंदा शंकर और उनके साथी कलाकारों का स्वगात किया। इस मौके पर मौजूद तमाम स्कूली

समारोह का शुभारंभ करने के बाद आनंदा शंकर का स्वागत करते हुए शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती किरण बजाज और फीरोजाबाद की जिला मजिस्टेट श्रीमती संध्या तिवारी



बच्चों को महान कलाकार ने एक आदर्श शिक्षक की तरह नृत्यकला के गुर भी बताए। उन्होंने बताया कि भरतनाट्यम्‌  और  कुचिपुडि नृत्य की विधाएं देश की सांस्कृति की  आत्मा हैं। एक विधा पूरब से और दूसरी दक्षिण भारत से संबंध रखती है। उन्होंने कहा कि भरतमुनि द्वारा रचित नाटयशास्त्र ही नृत्यकला का मूल श्रोत है। भरतमुनि को यह विद्या ब्रह्माजी ने दी।
आनंदा ने कहा कि नृत्य मानव की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। हर रोज, हर शख्स नाचता है। उसकी आम दिनचर्या के कई हावभाव नाच की श्रेणी में हैं। लेकिन उनका प्रकटीकरण एक क्रम में नहीं होने से उन्हें स्पष्ट रूप से नृत्य नहीं कहा जा सकता है। कुचिपुडि और भरतनाट्यम्‌    के अंतर को भी उन्होंने मुद्राओं के उदाहरण देकर समझाया।

कृष्ण के रोने का जीवंत रूप प्रस्तुत करतीं आनन्दा  शंकर  जयंत
संबोधन के बाद जैसे ही आनंदा ने नृत्य की भाव भंगिमाआंे को प्रस्तुत किया वैसे ही दर्शक मंत्रमुग्ध होकर उनकी कला में खो गए। कृष्ण की माखनचोरी लीला पर नृत्य के अभिनय से उन्होंने शुरुवात की। मटकी तोड कर ग्वालबालों के संग माखन लूट लेना और बचा हुआ गोपी के मुंह पर पोत कर भाग जाना। इसके बाद गोपी का कृष्ण को पकडने के लिए भागना। लीला के प्रत्येक पात्र के रूप में सिर्फ एक कलाकार द्वारा दी गई प्रस्तुति को देख हाल में लगातार तालियों की गडगडाहट गूंजती रही।

विश्वविख्यात नृत्यांगना ने गिरिराज को अंगुली पर उठाने का प्रसंग प्रस्तुत किया तो मिथिला के धनुष-यज्ञ को भी साकार किया। वहीं महाभारत के प्रसंग द्रोपदी के चीरहरण के माध्यम से करूणा का वातावरण बना दिया। अंत में उन्होंने स्कूली बच्चों की जिज्ञासाओं का समाधान और प्रश्नों के उत्तर भी दिए।

समारोह की आयोजक शब्दम्‌ अध्य्क्ष   श्रीमती किरण बजाज ने सहयोगी संस्था स्पिक मैके, कलाकार मंडल और अतिथियों का स्वागत किया।शब्दम सलाहकार मंडल के सदस्य  डा० महेशं आलोक ने कला और कलाकारों का विस्तार से परिचय दिया। मुकेश मणिकांचन ने संचालन किया। सहायक श्रमायुक्त राजेश मिश्रा, प्रभागीय वनाधिकारी परमानंद यादव, डा० ए ०के० आहूजा, अरविंद तिवारी के अलावा ज्ञानदीप सीनियर सैकेंडरी स्कूल, शांतिदेवी आहूजा महाविद्यालय, ब्राइट स्कालर्स एकेडमी, देवभूमि पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने सहभागिता की।



                         
डा० आनंदा शंकर जयंत के साथ सहयोगी कलाकार, बजाज इलैक्टीकल्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री शेखर बजाज,शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती किरण बजाज,  शब्दम्‌ सलाहकार मंडल के सदस्य  डा० महेशं आलोक, डा० ए ०के० आहूजा, अरविंद तिवारी आदि