शनिवार, 1 दिसंबर 2012

नवउदारवाद, बाजारवाद और अवसरवादी राजनीति ने हिन्दी को बहुत पीछे धकेल दिया है-डा. वेदप्रताप वैदिक


नवउदारवाद, बाजारवाद और अवसरवादी राजनीति ने हिन्दी को बहुत पीछे धकेल दिया है-डा0. वैदिक



डा0 वैदिक बोलते हुए साथ में बैठे हुए बाएं उदयप्रताप सिंह तथा दाएं शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरन बजाज


कार्यक्रम विषय - हिन्दी मीडिया से वर्तमान एवं भविष्य को उम्मीदें तथा हिन्दी सेवी सम्मान
दिनांक     - 17 नवम्बर 2012
संयोजन             - शब्दम्
आमंत्रित अतिथि - डा0 वेदप्रताप वैदिक, श्री उदयप्रताप सिंह
विशिष्ट अतिथि - शब्दम सलाहकार मंडल के सदस्य श्री उमाशंकर शर्मा, श्री मंजर उलवासै, डा0. ओ.पी. सिंह, डा0. महेश आलोक,  डा0. ध्रुवेन्द्र भदौरिया, डा0 रजनी यादव, श्री मुकेश मणिकान्चन एवं श्री बाल कृष्ण गुप्त, श्री अंशुमान बावरी, डा. सुशीला त्यागी, डा0 नरेन्द्र प्रकाश जैन, डा0. ए.बी. चैबे।
      
         शब्दम् का आठवां स्थापना दिवस पूर्णतः हिन्दी विमर्श को समर्पित था। इस अवसर  पर संस्था द्वारा हिन्दी के अग्रणी पैरोकार डा. वेदप्रताप वैदिक और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह को उनकी हिन्दी सेवा के लिए सम्मानित किया गया।।
 
डा0 वैदिक एवं उदयप्रताप सिंह को सम्मानित करतीं शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरन बजाज एवं शब्दम् सलाहकार मंडल के सदस्य
         
शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरन बजाज बोलते हुए
                कार्यक्रम अदभुत और अनूठा इसलिए भी बन गया क्योंकि ‘शब्दम्’ संस्था संगीत के साथ साहित्य को समर्पित संस्था भी है। संस्था की अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज ने जब एल.सी.डी. के जरिए संस्था के कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया तो हिन्द लैम्पस् संस्कृति भवन में उपस्थिति बुद्धिजीवियों ने करतल ध्वनि से उसकी सराहना की। विगत वर्षों में संस्था द्वारा किए गए कार्यों में, चाहे वह ग्रामीण कवि सम्मेलन के जरिए हिन्दी की अलख जगाने का कार्यक्रम हो या पर्यावरण जागरूकता का हिन्दी सेवियों के सम्मान की श्रंखला हो या म्यूजिक कंसर्ट के कार्यक्रम, सभी कार्यक्रम समाज सेवा के यज्ञ में एक से बढ़कर एक आहुति के समान दिखाई दे रहे थे।     एस.सी.डी. के चित्रों की जीवन्तता ने सभी दर्शकों का मनमोह लिया। श्रीमती किरण बजाज ने इस प्रजेंटेशन के जरिए यह तो साबित कर ही दिया कि शब्दम् संस्था हर वर्ष नए प्रतिमान गढ़ रही है, जिनका लाभ न केवल फिरोजाबाद अंचल अपितु पूरे आगरा संभाग को मिल रहा है। संस्था के सुरूचिपूर्ण प्रबन्धन और कर्मठ कार्यकर्ताओं की सक्रियता के चलते पर्यावरणीय प्रदूषण के साथ ही सांस्कृतिक प्रदूषण को दूर करने में संस्था का प्रयास श्लाघनीय है।
अपने सम्मान से अभिभूत जब डा. वेदप्रताप वैदिक हिन्दी विमर्श पर बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने उदयप्रताप जी को सम्बोधित करते हुए कहा ‘‘मेरे जीवन की अविस्मरणीय सभा के अध्यक्ष जी मुझे आज यहा आकर बेहद प्रसन्नता हो रही है’’ दरअसल ‘शब्दम्’ का हिन्दी भाषा से बेहद लगाव है यही कारण है कि 2012 के शिक्षक दिवस पर सम्मानित होने वाले प्रो. नामवर सिंह जी भी गदगद हो गए थे।
अपने उद्बोधन के प्रारंभ में ही डा. वैदिक ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केवल हिन्दी भाषा की स्थिति पर ही विमर्श को केन्द्रित करने का प्रयास करेंगे और बाद में उन्हों किया भी यही। वैदिक इस बात को लेकर बेहद आहत दिखे कि देश में चहुंओर अंग्रेजी का बोलबाला है। हिन्दी के प्रति दिलचस्पी न तो राजनेताओं में है और न उद्योगपतियों में। अंग्रेजी के आगे सम्पूर्ण भारतीय समाज भृत्य बनकर रह गय है। ‘‘अंग्रेजी के ऐसे घटाटोप में शब्दम् संस्था का हिन्दी प्रेम देखकर मुझे लगा जैसे शिकोहाबाद में कोई दाराशिकोह की तरह दीप जलाए बैठा है।’’ देश के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग अंग्रेजी सीखने को ‘पांडित्य’ समझता है। अंग्रेजी का ऐसा घटाटोप ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भी देखने को नहीं मिला।
डा. वैदिक ने बताया कि वह पहले विद्यार्थी थे जो हिन्दी में शोधग्रन्थ लिखकर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रस्तुत कर सके। प्रारंभ में उनके शोध को स्वीकार नहीं किया गया। नवउदारवाद, बाजारवाद और अवसरवादी राजनीति ने हिन्दी को बहुत पीछे धकेल दिया है। महात्मागांधी और डा. राम मनोहर लोहिया के बाद कोई ऐसा राजनेता सामने नहीं आया है जो हिन्दी के लिए संघर्ष कर सके। डाॅ. वैदिक ने स्पष्ट किया कि वह अंग्रेजी विरोधी नहीं है। उनकी कई पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी गयी हैं तथा वह विदेशों में अंग्रेजी में व्याख्यान देते हंै लेकिन जिस तरह अंग्रेजी भारतवासियों पर थोपी जा रही है उसका वह विरोध करते है। उनका मानना है कि इस अंग्रेजी की वर्चस्वता के चलते देश में साठ करोड़ लोग बीस रू. से कम खर्च पर प्रतिदिन गुजारा करते हुए पशुवत जीवन जीने को विवश है। सेना का यह हाल है कि वहाॅं बहादुरी से गोलियां चलाने वाले का सम्मान नहीं होता, बल्कि अंग्रेजी में जुबान चलाने वाले का सम्मान किया जाता है। देश के अनुसंधान पर भाषा के माध्यम का असर पड़ रहा है। भारतीय प्रतिभाएं अपनी प्रतिभा का उपयोग पहले अंग्रेजी साीखने में करती हैं उसके बाद ही अनुसंधान की ओर बढ़ पाती है। अंग्रेजी के तिलिस्म के चलते गरीब भारतवासी का बच्चा आगे नहंी बढ़ पाता। उन्होंने भारतवासियों के अंग्रेजी प्रेम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जो बच्चा अपनी मां (हिन्दी) को मां कहने में संकोच करता है वह मौसी (अंग्रेजी) की क्या इज्जत करेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उदयप्रताप जी को इंगित करते हुए वैदिक जी ने कहा कि आप हिन्दी संस्थान के जरिए ज्ञान-विज्ञान की श्रेष्ठ किताबों के हिन्दी अनुवाद का काम करवाइए ताकि छात्र-छात्राओं को लाभ मिल सके। अनुवाद के जरिए आप बहुत बड़ा काम कर सकते हैं।
उद्बोधन के अंत में डा. वैदिक ने श्रोताओं द्वारा उठाए गए प्रश्नों का समाधान भी प्रस्तुत किया।
डा0 महेश आलोक उदयप्रताप सिंह का परिचय देते हुए
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदयप्रताप ने आश्वासन दिया कि वह हिन्दी संस्थान में रहते हुए हिन्दी के प्रचार-प्रसार और संवर्द्धन का काम करेंगे। उदयप्रताप ने डा. वैदिक से सम्बन्धित कुछ रोचक संस्मरण भी सुनाए जिनका श्रोताओं ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। संस्था की अध्यक्ष किरण बजाज ने आग्रह पर उन्होंने अपनी गजल के कुछ शेर सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
 डा0 ओ0 पी0 सिंह डा0 वैदिक का परिचय देते हुए
कार्यक्रम के प्रारंभ में डा. ओ.पी. सिंह एवं डा.महेश आलोक ने क्रमश:

डा. वैदिक एवं उदयप्रताप सिंह के व्यक्तिव और कृतित्व पर प्रकाश डाला।तथा डा0 ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन मुकेश मणिकांचन ने किया।

सोमवार, 12 नवंबर 2012

वैदिक काल में आवास-व्यवस्था - महेश आलोक


       आवास व्यवस्था  किसी भी संस्कृति का एक महत्व्पूर्ण अंग है। यह सर्वमान्य है कि आवासों का निर्माण एवं उसका स्वरूप उसके निर्माताओं की आवश्यकताओं एवं चतुर्दिक पर्यावरण पर  आधारित होता है। इसके अतिरिक्त निर्माण हेतु उपलब्ध सामग्री एवं संस्कृतियों का तकनीकी स्तर भी आवास निवेश को एक बड़ी सीमा तक प्रभावित करते हैं। वैदिक संहिताओं में इस विषय से संबन्धित सामग्री सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। हमें केवल ग्राम, गृह या पुर जैसे कुछ शब्दों के रूप में ही सूचनाएं प्राप्त होती हैं। इन शब्दों को तत्कालीन पर्यावरण तथा सामाजिक आवश्यकताओं के परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है।
      वैदिक सहिताएं आर्यन संस्कृति की जानकारी हेतु प्राचीनतम लिखित प्रमाण हैं। इस दृष्टि से इनका ऐतिहासिक महत्व समस्त विश्व में स्वीकार किया जाता है। मूल संहिताएं ऋक, यजु, साम एवं अथर्व, केवल चार ही हैं। किन्तु कालान्तर में कुछ उपशाखाओं का उदय हुआ जिन्होंने भिन्न सहिताओं का निर्माण किया। वाजसनेयि, तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठक आदि संहिताएं इनका प्रमाण हैं। यों तो वैदिक संहिताओं के काल को लेकर विद्वानों के मध्य अत्यधिक मतभेद है तथापि इस संदर्भ में जर्मन विद्वान ‘विन्टरनित्स’1 का मत अपेक्षाकृत अधिक तर्कसंगत स्वीकार किया जाता है। इसी को आधार मानकर संहिताओं का काल लगभग द्वितीय सहस्त्राब्दी ईस्वी पूर्व निर्धारित किया जा सकता है। यह तो सर्वविदित है कि ऋग्वेद संहिता अन्य वैदिक सहिताओं की अपेक्षा अधिक प्राचीन है।
      अबतक अधिकांश विद्वानों की प्रायः यही धारणा रही है कि आरम्भिक वैदिक संस्कृति का आर्थिक मूल आधार पशुपालन था और कालान्तर में इसके अतिरिक्त कृषि भी जीवन यापन का मुख्य साधन बन गयी। जीवन यापन की इन मौलिक आवश्यकताओं को देखते हुए यह स्वीकार किया जा सकता है कि वैदिक आर्यों ने उन्हीं स्थलों को निवास के लिये चुना होगा जहां इन दोनों से सम्बन्धित सुविधाएं उपलब्ध हों। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसे समतल कृषि योग्य स्थलों को ही निवास निमित्त चुना गया होगा जिसमें पर्याप्त वर्षा होती हो अथवा नदी झील या तालाब का जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो। इस प्रकार के वातावरण या पर्यावरण में न तो चरागाहों का अभाव होगा और न ही ऐसे जंगलों का जिनमें आखेट योग्य पशु काफी संख्या में उपलब्ध हों।
     संहिताओं में आखेट के उल्लेख स्पष्ट करते हैं कि यह न केवल मनोविनोद का साधन था वरन् वैदिक अर्थव्यवस्था का भी एक महत्वपूर्ण अंग था। इसी प्रकार ऐसे भी उल्लेख हैं जिनमें पशुओं के ‘चरागाह’ (व्रजम्) एवं गोष्ठ ( गायों के खड़े होने का स्थान ) हैं।2 वैदिक मन्त्रों में इन्द्र, वरूण आदि देवताओं से वर्षा की प्रार्थना की गयी है,3 इसका तात्पर्य यह भी हो सकता है कि कभी कभी वैदिक आर्यों के निवास क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा नहीं होती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि जलवायु लगभग उसी प्रकार की थी जैसी उत्तरी भारत में वर्तमान समय में होती है।
      जैसा कि उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि वैदिक संस्कृत संहिता काल में पशुपालन आधारित आर्थिक व्यवस्था सीमित कृषि पर आधारित थी। ऐसी स्थिति में छोटी छोटी बस्तियों का यत्र- तत्र विद्यमान होना ही अघिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। संहिताओं का ग्राम ( मन्$ग्रस्) शब्द इन्हीं का द्योतक है। नगरों के विकास के लिये , जैसा कि आज समझा जाता है, विकसित उद्योग, समुचित व्यापार व्यवस्था एवं सुव्यवस्थित राजनैतिक प्रणाली का होना आवश्यक है। इसके अभाव में हम नगरों की कल्पना नहीं कर सकते। संहिताओं का ‘पुर’ शब्द स्वाभाविक रूप से नगरों का न होकर अन्य सुरक्षा सम्बन्धी निर्माण का द्योतक प्रतीत होता है। यही बात ‘दुर्ग’ के सम्बन्ध में नहीं कही जा सकती। गांवों में निवास निमित्त विविध आवश्यकताओं के अनुरूप ‘गृह’ निर्मित किये जाते थे। वस्तुतः आवास व्यवस्था से सम्बन्धित ‘ग्राम’, ‘गृह’, ‘पुर’ जैसे प्रचलित शब्द ही वैदिक संहिताओं में उपलब्ध हैं।
                   ..........................................................                                            
संदर्भ ग्रंथ सूची-
1.  विन्टरनित्स एम0- ए हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर  (अंग्रेजी अनुवाद)-  कलकत्ता- 1959
2.  व्रजम् ऋ0 10।26।3, 10।97।10 एवं 10।101।8,
    गोष्ठ  ऋ0 1।191।4, 6।28।1, 8।3।17,
    सेंट पीटर्स बुर्ग कोष के अनुसार ‘गोष्ठ’ का अर्थ है-पशुओं या गायों के खड़े होने का स्थान
3. ऋ0 4।57।7-9



Shabdam Foundation Day




सोमवार, 17 सितंबर 2012

हिन्दी दिवस पर विशेष- किरण बजाज




गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिन्दी दिवस १४ सितंबर पर विशेष


               हिन्दी भारतवर्ष की संस्कृति का प्राण है- किरण बजाज

    हिन्दी केवल भाषा नहीं है, हिन्दी भारतवर्ष की संस्कृति का प्राण है । हिन्दी भाषा ऐसा सूत्र है जो भारत के जन-जन के हृदय-पुष्प को माला की तरह पिरो कर एक कर देता है । हिन्दी में सम्पूर्ण विश्व में रचे-बसे भारतीयों को जोड़ने की अद्भुत क्षमता है ।  

    हिन्दी में मौलिक चिंतन, लेखन, सम्प्रेषणीयता, साहित्य, तकनीकी ,वित्त-व्यवसाय, कला, खेल, मनोरंजन, राजनीति और इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया में अपने विचार स्पष्ट रखने की अनुपम शक्ति है । साथ ही अध्यात्म ,प्रेम एवं शांति स्थापित करने की अनुपम निधि ।
 शब्दम्‌ अध्यक्ष किरण बजाज बोलते हुए

    सूर्य पर बादल की काली टुकड़़ी आ जाय और चमकते हुए हीरे पर धूल चढ़ जाए तो इसका मतलब यह नही होता कि सूर्य में प्रकाश नहीं है और हीरे में चमक नहीं। उसी तरह आज हमारी हिन्दी के विकास-पुंज पर भ्रष्टाचार एवं मानसिक हीनता की कालिख छाई हुई है । हमें यह चाहिए कि किस तरह से इस तेजस्विनी, गरिमामयी हिन्दी का पूर्ण गौरव और तेज जन -जन के हृदय में मुखरित हो ।

    मेरे कहने का अर्थ यह कतई नहीं है कि हिन्दुस्तान की अन्य भाषाओं और बोलियों को तनिक भी कम महत्व दिया जाय।  हिन्दी समुद्र है ,उसमें सब नदियाँ मिलती हैं । सागर तो तब भरेगा जब सब नदियाँ भरी हुई हों । इसी तरह हिन्दी तो तब बढ़ेगी जब सब भारतीय भाषाएं समृद्ध हों ।
   विषाद का विषय है कि बहुसंख्य भारतीयों के हृदय एवं मन में एक खतरनाक रोग लग गया है वह यह है हिन्दी के प्रति हीन भावना एवं अंग्रेजी के प्रति उच्चतर भावना । अंग्रेजी सीखना और प्रयोग करना गलत नहीं है पर जो भारतीय मानसिकता में  अंग्रेजी व अंग्रेजियत ने सफलतापूर्वक कब्जा जमा लिया है वह भयावह है और संस्कृति को भयंकर हानि पहुँचाने वाला ।  

    इस आपातकाल परिस्थिति में यह अत्यन्त जरुरी है कि शीघ्रातिशीघ्र नई पीढ़ी को इस हीन मानसिकता के रोग से मुक्त कराया जाय और हिन्दी के प्रति सर्वप्रथम प्रेम  और अच्छी सोच पैदा की जाय । इसका प्रमुख दायित्व सरकार ,प्रत्येक शिक्षक ,संस्था और देशप्रेमी पर |



बुधवार, 12 सितंबर 2012

आलोचक एक दुभाषिए की तरह है- प्रो० नामवर सिंह

                             `शब्दम् ’ ने किया एक आदर्श एवं महान शिक्षक के रूप में हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष     

                               नामवर सिंह का  सम्मान      


नामवर जी  “समालोचक की सामाजिक -सांस्कृतिक भूमिका “ विषय पर बोलते हुए, मंच
 पर  प्रोफेसर नन्दलाल पाठक,  उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष ,
 प्रतिष्ठित कवि एवं पूर्व सांसद उदयप्रताप सिंह,  ‘शब्दम्’ अध्यक्ष  किरण बजाज           
  
नामवर जी  बोलते हुए

    ‘ आलोचक एक दुभाषिए की तरह है । उसका        काम रचना को उस` वेवलेंथ ' तक ले जाकर पाठक से जोडना है जहां रचनाकार पहुंचना चाहता है या जिस ‘ वेवलेथ ' तक जाकर रचनाकार ने सोच और संवेदना के स्तर पर अपनी सर्जनात्मकता को अभिव्यक्त किया है। इसके बाद आलोचक की भूमिका समाप्त हो जाती है । नामवर जी ने “समालोचक की सामाजिक -सांस्कृतिक भूमिका ''विषय पर  साहित्य-संगीत -कला को समर्पित संस्था  ` शब्दम् '  की ओर से `शिक्षक दिवस' पर हिन्द लैम्पस, शिकोहाबाद स्थित संस्कृति भवन  सभागार में  व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए उक्त विचार ब्यक्त किये। साहित्य में कविता की महत्ता को रेखांकित करते हुए नामवर जी ने  उसकी रसात्मक भूमिका की ओर संकेत किया । उन्होने कहा कि लोग मुझे अज्ञेय का विरोधी मानते हैं, ऐसा नही है। `अज्ञेय' की कविता ‘असाध्य वीणा’ बड़ी कविता है । नामवर जी ने ‘असाध्य वीणा’ का पाठ करते हुए उसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होने कहा कि आलोचक जब तक सह्र्दय नहीं होगा, आलोचना संभव नही है। 
 नामवर जी को  सम्मान पत्र  देकर  सम्मानित  करतीं
‘शब्दम्’ अध्यक्ष  किरण बजाज,  सलाहकार मंडल के सदस्य-  डा० ओ पी सिंह  
डा० महेश आलोक ,   मंजर-उल-वासे      
 
 स्वागत वक्तव्य में  ‘शब्दम्’ अध्यक्ष  किरण बजाज 
 नामवर सिंह  के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए  
       इसके पूर्व नामवर जी को पहली बार एक आदर्श और महान शिक्षक के रूप में ‘शब्दम्’ की ओर से सम्मानित किया गया। सम्मान में ‘हरित कलश, नारियल,अंगवस्त्रम्‌,शाल,सम्मान पत्र एवं रू० ५१०००/ की सम्मान राशि देकर ‘शब्दम्’ अध्यक्ष  किरण बजाज,  नन्दलाल पाठक, उदयप्रताप  सिह एवं  शब्दम् सलाहकार मंडल के सदस्यों ने सम्मानित किया। नन्दलाल पाठक एवं उदयप्रताप सिंह को भी किरण बजाज एवं सलाहकार मंडल के सदस्यो ने “हरित कलश , शाल एवं नारियल” भेंट कर 
सम्मानित किया ।


 सम्मान के समय पार्श्व में सुमधुर मंगल गीत “शुभ मंगल हो , शुभ मंगल हो, शुभ मंगल- मंगल- मंगल हो ” का गायन पूरे वातावरण की गरिमा और भब्यता को एक नये रूप में परिभाषित कर रहा था। 

   अपने स्वागत वक्तव्य में  ‘शब्दम्’ अध्यक्ष  किरण बजाज ने नामवर सिंह के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि “नामवर सिंह को सम्मानित कर ‘शब्दम्’  स्वयं सम्मानित हुई है । नामवर जी इस समय ‘महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय. वर्धा ’ के ‘कुलाधिपति’ हैं और वर्धा मेरा घर है, इसलिये आज मै बहुत आत्मीय महसूस कर रही हूँ । ”


प्रोफेसर नन्दलाल पाठक  अतीत की मधुर स्मृतियो
 का स्मरण करते हुए 
   
      मुम्बई से पधारे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी  में नामवर सिंह के सहपाठी रहे मुम्बई विश्वविद्यालय के निवर्तमान हिन्दी प्रोफेसर नन्दलाल पाठक ने इस अवसर पर अपने अतीत की मधुर स्मृतियो का स्मरण किया ।  प्रो० पाठक ने शिक्षक दिवस पर गुरु -शिष्य सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए कहा कि “जैसे रामकृष्ण परमहंस को विवेकानन्द मिले  वैसे ही आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी  को नामवर । ''
 उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष ,
प्रतिष्ठित कवि एवं पूर्व सांसद उदयप्रताप सिंह

अध्यक्षीय
 वक्तव्य देते  हुए 
    




   कार्यक्रम की अध्यक्षता  कर रहे उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष , प्रतिष्ठित कवि एवं
पूर्व सांसद उदयप्रताप सिंह ने कहा कि  नामवर जी 
को सुनना इसलिए एक अद्वितीय अनुभव है  कि वे हर बार अपने आलोचकीय वक्तव्य में कुछ ऐसा नया जोड़ देते है जो इसके पहले नहीं सुना गया।

     प्रो० नामवर सिंह का परिचय देते हुए पालीवाल      महाविद्यालय, शिकोहाबाद के प्राचार्य एवं ‘शब्दम्’   सलाहकार मंडल के सदस्य डा० ओ पी सिंह ने कहा कि “किसी भी महान व्यक्तित्व के निर्माण के लिए माता -पिता से मिले संस्कार , स्कूली शिक्षा के दौरान अच्छे शिक्षक एवं सहपाठी तथा स्वयं की इच्छा-शक्ति एवं विश्वास का होना अतिआवश्यक है और यह संयोग की बात हे कि नामवर जी को यह सब चीजें प्राप्त है। ” उन्होने उनके बचपन के दिनों की याद ताजा की । 
प्रो० नामवर सिंह का परिचय देते हुए
‘शब्दम्’   सलाहकार मंडल के सदस्य डा० ओ पी सिंह

      नारायण महाविद्यालय, शिकोहाबाद मे हिन्दी के एसोशिएट प्रोफेसर , ‘शब्दम्’   सलाहकार मंडल के सदस्य,युवा कवि-समीक्षक  एवं नामवर जी के शिष्य  डा० महेश आलोक ने ‘शब्दम्’   का परिचय प्रस्तुत किया। । उन्होने नामवर जी के बारे में छात्र- जीवन ( जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नयी दिल्ली में अध्ययन करते समय) का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि “ नामवर जी अपने छात्रो के भीतर अपने से बड़े आलोचको से टकराने का साहस पैदा करते हैं ।छात्रो को समझाते  है कि “अविवेकपूर्ण सहमति से विवेकपूर्ण असहमति अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।महेश आलोक ने जोर देकर कहा कि “आचार्य शुक्ल के पश्चात नामवर जी अकेले ऐसे आलोचक हैं, जिनसे जुड़ना और टकराना- दोनो हिन्दी आलोचना के विकास के लिये आवश्यक है। ” 
‘शब्दम्’   सलाहकार मंडल के सदस्य, डा० महेश आलोक छात्र- जीवन
 जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नयी दिल्ली में अध्ययन करते समय) का संस्मरण सुनाते हुए 
समारोह में डा० भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय,आगरा के कुलपति
 प्रो० डी एन जौहर,उद्योगपति  बालकृष्ण गुप्त
 उ०प्र०लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्रीराम आर्या एवं प्रबुद्ध श्रोतागण 
         समारोह में डा० भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय,आगरा के कुलपति प्रो० डी एन जौहर,उ०प्र०लोक सेवा  आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्रीराम आर्या ,  आगरा कालेज,आगरा के प्राचार्य डा० मनोज रावत,आर० बी० एस० कालेज, आगरा के प्राचार्य डा० टी आर चैहान,के० के० कालेज, इटावा के प्राचार्य डा० मौकम सिह यादव,  जे० एल० एन० कालेज, एटा के प्राचार्य डा० उदयवीर सिह,  एस० आर०के ०  कालेज, फिरोजाबाद के प्राचार्य  डा०  बी०  के० अग्रवाल , बी०डी० एम० कालेज, शिकोहाबाद की प्राचार्या डा० कान्ता  श्रीवास्तव,महात्मा गांधी महिला महाविद्यालय,  फिरोजाबाद की प्राचार्या डा० निर्मला यादव  सहित आगरा,  इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद,  शिकोहाबाद के विभिन्न कालेजो के हिन्दी के  विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापकगण ,चक्रेश जैन, उद्योगपति  बालकृष्ण गुप्त  एवं शब्दम सलाहकार मंडल के सदस्य उमाशंकर शर्मा,  मंजर-उल-वासे,  नवोदय विद्यालय की प्राचार्या डा० सुमनलता द्विवेदी सहित प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे । समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डा० ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने किया। 
            

रविवार, 2 सितंबर 2012

हिन्दी आलोचना के शिखर पुरूष प्रो० नामवर सिंह का सम्मान एक आदर्श शिक्षक के रूप में


हिन्दी आलोचना के शिखर पुरूष प्रो० नामवर सिंह का सम्मान एक आदर्श शिक्षक के रूप में पहली बार ‘शब्दम्‌’ (साहित्य,संगीत,कला को समर्पित) संस्था द्वारा शिकोहाबाद(फिरोजाबाद)- उ०प्र० स्थित हिन्द परिसर में दिनांक- ५ सितम्बर २०१२ (शिक्षक दिवस) को किया जा रहा है। इस अवसर पर नामवर जी ‘ समालोचक की सामाजिक-सास्कृतिक भूमिका’ पर सारगर्भित ब्याख्यान भी देंगे। आप सभी आमंत्रित हैं।
स्थान- हिन्द परिसर, शिकोहाबाद(फिरोजाबाद)- उ०प्र०
दिनांक- ५ सितम्बर २०१२ (शिक्षक दिवस)
समय- ४.३० बजे सायं (४.१५ तक स्थान अवश्य ग्रहण कर लें)
                                     - महेश आलोक
                                     ‘शब्दम्‌’ सलाहकार            

   

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

शब्दम् हिंदी प्रश्नमंच प्रतियोगिता आयोजित


साहित्य, संगीत और कला को समर्पित संस्था शब्दम् द्वारा नए शिक्षण सत्र में दिनांक 11 जुलाई 2012 को मांड़ई स्थित संत जनू बाबा स्मारक महाविद्यालय में हिंदी प्रश्नमंच प्रतियोगिता का आगाज किया गया। जिसमें बीएड संकाय के 52 छात्र और छात्राओं ने हिस्सा लिया। प्रश्न का सही उत्तर देने वाले छात्र-छात्राओं को शब्दम् द्वारा सम्मानित भी किया गया।

कार्यक्रम का प्रारम्भ शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य श्री मंजर उल वासै व कालेज के निदेशक श्री बृजेश बाबू गर्ग, सचिव श्री रामकैलाश यादव और प्राचार्य डा. जयदेव सिंह ने वाग्देवी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। तत्पश्चात् कालेज की छात्राओं ने सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इसके बाद शब्दम् के वरिष्ठ समन्वयक श्री अनुराग मिश्र ने संस्था और उसके उद्देश्यों के संबंध में छात्र-छात्राओं को जानकारी दी। शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य श्री मंजर उल वासै ने छात्रों से उनके स्तर के मुताबिक प्रश्न पूछे और उनका जो भी उत्तर है वह क्यों सही है यह भी विस्तार से समझाया। छात्रों में अभिषेक कुमार ने तीन, रंजन मिश्रा ने दो तथा शैलेष कुमार और विकास ने एक-एक प्रश्न का सही उत्तर दिया। इसी प्रकार छात्राओं में अमृता चतुर्वेदी, मधुभारती और रेनू बाला ने दो-दो तथा आकांक्षा, मांडवी चतुर्वेदी, संगीता और देव नंदनी ने एक-एक प्रश्न का सही उत्तर दिया। सही उत्तर देने वाले सभी विद्यार्थियों को शब्दम् की ओर से लेखनी प्रदान कर सम्मानित किया गया। प्रतियोगिता में कालेज के छात्र-छात्राओं ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। अंत में प्राचार्य डा. जयदेव सिंह ने हिंदी प्रश्नमंच कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए हिंदी के उत्थान के लिए शब्दम् के प्रयासों की सराहना की।

"केसरिया बालम पधारो म्हारे देश"

दिनांक 24 अप्रैल 2012, मंगलवार

हिन्द परिसर स्थित संस्कृति भवन


साहित्य, संगीत और कला को समर्पित संस्था शब्दम और भारतीय लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने में कार्यरत संस्था स्पिक मैके के सहयोग से हिन्द परिसर स्थित संस्कृति भवन में राजस्थानी लोकनृत्य एवं गायन का आयोजन किया गया।

राजस्थान के जैसलमेर की मंगलियार जाति (जो राजपूत राजाओं के लिए गाने बजाने का कार्य करती थी) से सम्बन्ध रखने वाले खेटा खान व उनके साथियों ने राजस्थानी लोक संगीत को न केवल राजस्थान की सीमा के आगे अपितु देश के बाहर न्यूजीलैंड, यू.के., कनाडा तक पहुंचा दिया है। लोक गीतों को मात्र ग्रामगीत कहकर उनकी व्यापकता को कम नहीं किया जा सकता।

श्री खेटा खान ने अपनी कला व शास्त्रीय गायन के बीच के अन्तर को स्पष्ट करते हुये बताया कि शास्त्रीय गायन के लोग सुर व राग को गिन कर गाते हैं जबकि हम केवल गाने को दिमाग में रखते हैं और गाते व वाद्य यन्त्र बजाते हैं।

अपनी कला का प्रदर्शन खेटा खान ने गणेश वन्दना ‘‘महाराज गजानन आओ री मौरी सभा में रंग बरसाओ री.....................’’ के साथ किया।

राजपूतों में केसरिया रंग की महत्ता को बताते हुये ‘‘केसरिया बालम पधारो म्हारो देश.................’’ की धुन छेड़ी तो दर्शक ताली बजाने से अपने को रोक न सके।

खेटा खान ने जब कामयचा वाद्ययन्त्र की धुन को तबले की धुन के साथ मिलाया गया तो सुनने वाले झूम उठे और तालियों की लय से साथ मिलाने लगे।

एक के बाद एक लोक गीत ‘‘झूमा रे, झूमा रे, ढोलन मजारो मारो लूमा रे लूमा रे झूमा रे झूमा रे.................’’

निबुड़ा-निबुड़ा............................

दमादम मस्त कलन्दर ......................

आदि गानों को सुनकर लोग झूमते रहे।

वाद्ययंत्रों की थाप एवं उनसे निकलती धुन पर राजस्थान की प्रसिद्ध कालबेलिया लोकनृत्य की मनमोहक प्रस्तुति ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया । नृत्यांगना ने अपनी आंखों के माध्यम से जमीन से अंगूठी उठाने की अदभुत कला का हैरतअंगेज नजारा पेश किया। जिसे देश दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे।

सूफीयाना कलाम छाप तिलक सब छीनी तोसे नैना मिलायके..........ने सभी दर्शकों के दिल पर अमिट छाप छोड़ दी। खेटाखान एवं उनके समूह के साथियों चनन खान, बरकत खान, कचरा खान, शेर खान, कुकला खान, शेर नाथ एवं लीला ने नृत्य एवं गायन की अदभुत एवं मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुति दी ।

कार्यक्रम का शुभारम्भ सलाहकार मण्डल के सदस्यों एवं खेटा खान द्वारा दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ।

कलाकारों का धन्यवाद देते हुये शब्दम् सलाहकार मण्डल की सदस्य एवं ज्ञानदीप सी.सेके. पब्लिक स्कूल की निदेशिका डा. रजनी यादव ने कहा कि धरती के उन महान सपूतों को जो अपनी कला और संस्कृति को आज भी कायम रखे हये है शब्दम् शतशत नमन करता है। उन्होंने स्पिक मैके की राज्य समन्वयक डा. राजश्री को धन्यवाद दिया कि जिनके माध्यम से शिकोहाबाद को ऐसे महान कलाकारों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। डा. रजनी ने शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती बजाज को धन्यवाद देते हुये कहा कि उनके प्रयासों से हिन्दी संस्कृति और कला को बल मिला है।

कार्यक्रम में शब्दम् सलाहकार मण्डल के सदस्य श्री उमाशंकर शर्मा, श्री मंजर उल वासै, डा. ओ.पी. सिंह, डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया साथ ही शहर के गणमान्य डा. आर.के. सिंह, डा दीपाली अग्रवाल, डा. एस.के .एस. चौहान सहित हिन्द परिवार के लोग उपस्थित रहे ।

ज्ञानदीप स्कूल, ब्राइट स्कालर्स स्कूल, लार्ड कृष्णा स्कूल के कला संगीत में रुचि लेने वाले बच्चों ने भी कार्यक्रम का आनन्द उठाया। कार्यक्रम का संचालन श्री मुकेश मणिकान्चन ने किया।

बुधवार, 4 जुलाई 2012

‘जब दीप जले.. आना....’

8 मई 2012,   हिंद परिसर

शब्दम् और स्पिक मैके के संयुक्त तत्वावधान में हिंद परिसर स्थित संस्कृति भवन में सितार व तबला वादन कार्यक्रम ‘जब दीप जले.. आना....’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विश्व प्रसिद्ध सितार वादक प. रविशंकर के शिष्य पं. शुभेन्द्र राव ने सितार पर अपनी प्रस्तुति दी। श्री शैलेन्द्र मिश्र ने उनके साथ तबले पर संगत की। सितार और तबले से निकले मधुर राग ने उपस्थित श्रोताओं को इस प्रकार मंत्रमुग्ध कर दिया कि वो पूरी तरह से भारतीय शास्त्रीय संगीत के रस में डूब गए।
कार्यक्रम प्रस्तुत करते पं. शुभेन्द्र राव व श्री शैलेन्द्र मिश्र
 पं. शुभेन्द्र राव ने ‘पूरिया कल्याण’ राग के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद कई रागों को मिलाकर पं. राव व श्री मिश्र ने एक साथ सितार व तबले पर जुगलबंदी की। श्रोताओं ने भारतीय शास्त्रीय संगीत का भरपूर लुफ्त उठाया और तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का खूब उत्साह वर्धन किया। अंत में बापू के पसंदीदा भजन ‘वैष्णव जन....’ की मधुर धुन ने तो मानों लोगों को मन ही मन भक्ति रस में झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मौजूद बच्चों ने भी संगीत का भरपूर आनंद लिया। इसके बाद शब्दम् सलाहकार मंडल द्वारा कलाकारों को शॉल भेंटकर सम्मानित किया गया। डा. महेश आलोक ने कलाकारों का परिचय दिया। डा. रजनी यादव ने आगन्तुक कलाकारों व श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन श्री मुकेश मणिकांचन ने किया।

राग पूरिया-कल्याण : 
दो रागों पूरिया और कल्याण को मिलाकर पूरिया-कल्याण राग बना है। पूरिया-कल्याण राग वह राग है जिसे सूर्यास्त के बाद बजाया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि एक ही समय में दो अलग-अलग रागों को साथ में बजाते हुए दोनों की लय बरकरार रखना। शास्त्रीय संगीत में एक विषेष तथ्य है कि कुछ राग ऐसे हैं जिनको बजाने का समय निर्धारित है।

कलाकारों का संक्षिप्त परिचय :
 पं. शुभेन्द्र राव का जन्म सन् 1964 में मैसूर में हुआ। उनके पिता श्री एन. आर. रामा राव प.रविशंकर के शिष्य रहे और उनकी माता जी भी सरस्वती वीणा वादन करती हैं। श्री राव ने संगीत की तालीम प. रविशंकर के संरक्षण में पाई। पं. राव ने 1984 में दिल्ली में अपना पहला कार्यक्रम और 1987 में बंगलुरू में अपने पहले सोलो कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। पं. राव भारत ही नहीं वरन् विश्व के कई देशों जैसे कन्सर्ट हाल ब्राडवे, कारनेगी हाल न्यूयार्क, वोमैड उत्सव गुर्नसे (यूके), नेशनल आर्ट्स उत्सव दक्षिण अफ्रीका, थियेटर डी ली विले पेरिस में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। पं. राव को 2007 में जी टीवी द्वारा यूथ आइकान फॉर क्लासिकल म्यूजिक के पारितोषिक से सम्मानित भी किया जा चुका है।
 तबले पर संगत कर रहे श्री शैलेन्द्र मिश्र बनारस और फर्रूखाबाद घरानों से ताल्लुक रखते हैं। इन्हें ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के ‘ए’ ग्रेड कलाकार का दर्जा प्राप्त है। श्री मिश्र भी भारत और अन्य देशों में अपने कई कार्यक्रमों की प्रस्तुति दे चुके हैं।

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

पांचवां ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन

 1 जुलाई 2012 जसराना


काव्य पाठ करते डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया


 साहित्य-संगीत-कला को समर्पित संस्था शब्दम् द्वारा दिनांक 1 जुलाई 2012 को पांचवां ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन जसराना में महादेव मंदिर के निकट स्थित बगिया में आयोजित किया गया जहां सैकड़ों की संख्या में श्रोता उपस्थित रहे। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी कवि श्री ओमप्रकाश उपाध्याय ‘मधुर’ ने की। सम्मेलन के दौरान पर्यावरण मित्र का स्टाल लगाकर लोगों को पर्यावरण और जैविक खेती के प्रति जागरूक भी किया गया।
     कार्यक्रम का शुभारंभ परम्परागत तरीके से मां सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्पन और दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य व वरिष्ठ कवि डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने कवियों का परिचय कराया। तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों को संस्था पर्यावरण मित्र की ओर से हरित कलश भेंट कर स्वागत किया गया। शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य श्री मंजर उल वासै ने शब्दम् संस्था का परिचय दिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डा. भदौरिया ने सबसे पहले एटा से आयी नवोदित कवयित्री कुमारी योगेश चैहान को आमंत्रित किया जिन्होंने ‘शब्द मेरे सजें अर्चना के लिए, साधिका मैं बनूं साधना के लिए’ सरस्वती वंदना की। उन्होंने कविता के माध्यम से भ्रूण हत्या और किसानों की समस्याओं को भी उजागर किया।
    शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती किरण बजाज ने दूरभाष के माध्यम से अपने संदेश में कहा कि ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन के आयोजन के पीछे मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति लोगों के मन में प्रेम जगाना है। श्रीमती बजाज ने आह्नान किया कि अधिक से अधिक संख्या में लोग हिंदी के उत्थान के लिए काम करें। शब्दम् के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि प्रो. नंदलाल पाठक ने लोगों को हिंदी से जुड़ने की सीख देते हुए अपनी गजल ‘नभ रहे नीला, धरा धानी रहे, सांस ले सकने में आसानी रहे’ के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश दिया।
     मिलावली से आए कवि एवं गीतकार डा. राजेन्द्र यादव ने अपने गीत ‘सुख सपना दुख बुलबुला, पलभर का मेहमान है, आशा दीप बुझा मत देना मंजिल अब आसान है’ के माध्यम से लोगों को धैर्य रखने की सीख दी। वरिष्ठ कवि डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने वीर रस की कविताओं ‘चंद्रशेखर ने खेली होली खून से तो लाल-लाल खून ही गुलाल लगने लगा’ और ‘ ....तो आज हमें आजाद हिंदुस्तान नहीं मिलता’ के माध्यम से श्रोताओं में जोश का संचार किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश उपाध्याय ‘मधुर’ ‘डाकुओं का केंद्र आज बनी राजधानी है’ और ‘चारों चरे बिहारी साड़ कि अन्ना खेत बचइयो रे’ जैसी कविताओं और लोकगीतों के माध्यम से लोगों को वाह-वाह कहने पर मजबूर कर दिया।
    मैनपुरी से पधारे कवि श्री जयेंद्र ‘लल्ला’ ने व्यंग्य ‘बनवारी की भैंस ने जब पड़िया जनी तो कई दिन तक खुशियां मनी, जब बनवारी की पत्नी ने बिटिया जनी तो उसने माथा फोड़ लिया’ के माध्यम से भ्रूण हत्या और अन्य सामाजिक बुराइयों को उजागर किया। लखीमपुर खीरी से आए व्यंजना विधा के महारथी कवि श्री श्रीकांत सिंह ने व्यंग्य ‘मैंने बिजली से पूछा कहो कैसी हो दिखती नहीं हो आजकल, बिजली बोली मौज में हूं, दिखूं कैसे कन्नौज में हूं’ के माध्यम से लोगों को गुदगुदाते हुए सरकार पर कटाक्ष करते हुए खूब तालियां बटोरीं। जसराना के स्थानीय कवियों श्री खलील गुमनाम, श्री अशोक अनजाना और श्री दुर्ग विजय सिंह ने भी काव्य पाठ किया।  
   कार्यक्रम के आयोजन में स्थानीय नागरिकों श्री राजेंद्र सिंह प्रधानाचार्य, श्री बाबी यादव, हिमांशु आटोमोबाइल के श्री अरविंद गुप्ता, श्री विशेष यादव, श्री राकेश यादव, श्री के.के. यादव का विशेष रूप से योगदान रहा। कार्यक्रम में शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य डा. ओ.पी. सिंह, डा. ए.के. आहूजा, श्री उमाशंकर शर्मा, डा. एस.के.एस. चैहान, डा. आर. बी. सिंह पूर्व प्राचार्य नारायण कालेज समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

गुरुवार, 21 जून 2012


                                                               चर्तुथ ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन
                                                                             गांव लखनपुरा -दिनांक 15 जून 2011 


    साहित्य-संगीत-कला को समर्पित संस्था शब्दम् द्वारा दिनांक 15 जून 2011 को चर्तुथ ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। लोकप्रिय ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी कवि व पूर्व सांसद श्री उदय प्रताप सिंह ने की।
    कार्यक्रम का प्रारम्भ परम्परागत तरीके से सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलित कर किया। लखनऊ से आयी कवियत्री सुश्री व्याख्या मिश्र एवं काशगंज के श्री निर्मल सक्सेना ने सरस्वती वंदना की। सरस्वती वंदना के बाद शब्दम् संस्था के उपाध्यक्ष प्रो0 नंदलाल पाठक ने अपने संदेश में कहा कि आज आप ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन का आनन्द लेने आये हैं। इसके लिए आपको हार्दिक बधाई। ग्रामीण जीवन के चित्रण ने सूरदास को महाकवि का आसन प्रदान किया। एसे कार्यक्रम आयोजित कर शब्दम् अपने को धन्य मानता है।
वरिष्ठ हिन्दी कवि व पूर्व सांसद श्री उदय प्रताप सिंह 
    शब्दम् संस्था की अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज ने अपने संदेश में कहा कि देश, समाज, पर्यावरण एवं हिन्दी शिक्षा का विकास करने वाले लोग धन्यवाद के पात्र है। मैं चाहूंगी कि ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन का सभी लाभ उठाए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डा0 ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने कहा कि कवियों का श्रोताओं से तुला तुल्य नाता है।
वरिष्ठ कवि श्री उदयप्रताप सिंह ने कहा कि गांधी जी कहते थे कि असली भारत गांव में रहता है। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से किसानों को जागृत किया। श्री उदयप्रताप सिंह ने अपनी कविता ‘‘वतन के कृषक और मजदूर, देश की माटी के सिन्दूर, उठो मेरे मीत उठो’’ से देश प्रेम की भावना को जागृत किया। उन्होंने कहा ‘‘गांव जितना प्रेम एवं सम्मान मिलता उतना कहीं नहीं-- शहर में मां-बाप आते है मुसीबत की तरह, गांव में आते हैं मेहमानों की तरह गांव में गये तो अपने पराये राजी प्यार देते है। होटल में ठहराते हैं शहरों में।
आजादी का सूरज चमका शहरों के आकाश में,
गांव पड़े है अभी गुलामी के इतिहास में।।
कासगंज के कवि निर्मल सक्सेना ने कहा कि गांव ने समाज को क्या नहीं दिया। कविता के माध्यम से कहते है।
     गांव मजदूर देता खेत खलियान देता । वास्ते जीने के सभी सामान देता।
शरहदों की सुरक्षा रात-दिन करते जो जागकर देश पर हो कुर्बान जहाँ में सबसे सुन्दर है मेरा गांव।
पर्यावरण सुरक्षा एवं ध्रुमपान का विरोध करते हुए कहा कि हमें खुशहाल रहना है तो गांव की ओर जाएगें।
पुराने अनुभवों से नया भारत बनायेंगे। रहे पर्यारण उत्तम नये हम वृक्ष लगायेंगे।
शहरों की दौड में शामिल गांव के लोगों, बहुत कीमती है जीवन व्यसनों में न खोय ये तम्बाकू मंदिरा फसल है मौत की कभी इन्हें जीवन में न बोना।
    श्री मुकेश मणिकान्चन ने समाज में जो परिवर्तन हो रहा है उसके बारे में कहा ‘‘प्यार का तो पुराना चलन हो गया। प्रीति की भावना का दमन हो गया। द्वेष की ग्रंथियां सभी के मन में भरी है, आज लोगों का क्या आचरण हो गया।
आगरा से आये डा0 केशव शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से कहा‘‘ अब हम किसे दोष दें और करे हम विलाप पीर। आंसुओं की गली में फरिस्ते मिले, टूटे-टूटे से बिखरे रिस्ते मिले टूटे रिस्तों की मेंहदी सजाते रहे लोग आते रहे जाते रहे।
आगरा से जाये श्री प्रताप दीक्षित ने ग्रामीण जीवन के बारे में कहा कि- ‘‘गांव शहरों की चला-चली से अच्छा लगता है। उगता सूरज सांझ ढ़ली से अच्छा लगता है’’
‘‘जिन्दगी कहां से कहां खींच लायी एक ओर कुंआ सब ओर खाई है’’
फिरोजाबाद से आये कवि चन्द्र प्रकाश यादव चन्द्र ने गुटखा, तम्बाकू का विरोध अपनी कविता के माध्यम से किया।
        गुटखा और तम्बाकू में आदी सब भये, कंचन की काया को ले डूबि भये।
कार्यक्रम में डा0 ओ0पी0 सिंह, डा0 ए0के0 आहूजा, डा0 उमाशंकर शर्मा, डा0 रजनी यादव एवं सिरसागंज से वरिष्ठ चिकित्सक डा0 धर्मेन्द्र नाथ, सहाय वन निरीक्षक, फिरोजाबाद श्री तेज प्रताप सिंह आदि गणमान्य व्यक्ति के अतिरिक्त लखनपुर आश्रम के स्वामी महाराम दास जी महाराज का विशेष योगदान रहा। गांव लखनपुरा के रामनरेश के अलावा सभी ग्रामवासियों एवं क्षेत्रवासियों का पूर्ण सहयोग रहा।
कार्यक्रम संयोजक श्री शशिकान्त पाण्डेय सहित शब्दम् और पर्यावरण मित्र के कार्यकर्ताओं ने समारोह की व्यवस्था को अंजाम दिया। आश्रम में पर्यावरण मित्र का स्टाल लगाकर लोगों को जागरूक किया गया